कर्ज होता तो उतार भी देते,
कम्बख्त तेरा इश्क था,
चढ़ा ही रहा…
कर्ज लेने की
आदत तो न थी हमारी,
पर दिल ज़रूर गिरवी पड़ा है
उनके पास !!
मैं शहर भी आया तो कर्ज लेकर,
अपनी हर जिम्मेदारी का फर्ज लेकर,
किसने सोचा था बिक जाऊँगा
चंद पैसों में हजारों दर्द लेकर।
क्या चाहती है हम से, हमारी ये ज़िंदगी....क्या क़र्ज़ है जो हम से, अदा हो नहीं रहा....
क्या चाहती है हम से, हमारी ये ज़िंदगी....
क्या क़र्ज़ है जो हम से, अदा हो नहीं रहा....