बीच राह में कुछ इस अंदाज़ से छोड़ा उसने हाथ मेरा,कोई अब सहारा भी दे तो घबरा जाता हूं मैं!
झूठ का अंदाज जमाने को भाता है,सच कहाँ किसी को नजर आता है.
नज़र अंदाज़ करते हो तो, लो हट जाते है
नज़रों से!इन्हीं नज़रों से ढूँढोगे,
नजर जब हम नहीं आएंगे
अंदाज़ मुझे भी आते है नजर अंदाज करने की
पर तु तकलीफ से गुजरे ये मुझे गवारा नहीं
*तेरा हर अंदाज़ अच्छा है*
*सिवाए नज़र अंदाज़ करने के* 🤣🤣
अंदाज़ भी निराला है उनका
वो हो कर खफा मुझ से
मेरे गुमशुदगी की वजह पूछते हैं