बीच राह में कुछ इस अंदाज़ से छोड़ा उसने हाथ मेरा,कोई अब सहारा भी दे तो घबरा जाता हूं मैं!
हुनर नही है मुझमे झूठी बात करने का,यही कारण है लोगो के नज़र अंदाज़ करने का.
झूठ का अंदाज जमाने को भाता है,सच कहाँ किसी को नजर आता है.
नज़र अंदाज़ करते हो तो, लो हट जाते है
नज़रों से!इन्हीं नज़रों से ढूँढोगे,
नजर जब हम नहीं आएंगे
अंदाज़ मुझे भी आते है नजर अंदाज करने की
पर तु तकलीफ से गुजरे ये मुझे गवारा नहीं
अंदाज़ भी निराला है उनका
वो हो कर खफा मुझ से
मेरे गुमशुदगी की वजह पूछते हैं