भीष्म क्यों थे इतने शक्ति शाली?

भीष्म क्यों थे इतने शक्ति शाली?

देवव्रत जिसे महाभारत में पितामह भीष्म या गंगा पुत्र भीष्म के नाम से जाना जाता है. वो महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे, उनसे आर्यवर्त के सभी राजा और योद्धा डरते थे. भीष्म आखिर इतने शक्तिशाली क्यों थे? उन्हें कैसे मिला इच्छा मृत्यु का वरदान? क्यों डरते थे आर्यवर्त के सभी योद्धा उनसे?  इस प्रकार के कई सारे रहस्य है जिनके जवाब हर कोई जानना चाहता है. तो आइये जानते है कैसे देवव्रत बने आर्यवर्त के सबसे शक्तिशाली योद्धा पितामह भीष्म.... 

 आर्यवर्त के महाराज शांतनु की पहली पत्नी गंगा से उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम देवव्रत रखा गया. जब देवव्रत का जन्म हुआ तब माता गंगा उन्हें अपने साथ लेकर चली गई और महाराज शांतनु को वचन दिया कि मैं आपके इस पुत्र को महाबलशाली, आदर्शवादी और एक नेक मनुष्य बनाने के बाद आपके पास भेज दूंगी. इसके बाद वो देवव्रत को लेकर देवलोक चली गई करीब सोलह साल बाद गंगा ने एक नवयुवक के साथ लौटी और उन्होंने महाराज शांतनु से कहा, महाराज ये हमारा पुत्र है देवव्रत जो एक परम प्रतापी, विद्वान और आज्ञाकारी है. मैंने अपने वचन को पूर्ण किया और आज इतने वर्षों के बाद आपके पुत्र को आपके उत्तराधिकारी बनने के लायक बना दिया है. इसे देवगुरु बृहस्पति ने स्वयं वेदों की शिक्षा दी है और भगवान परशुराम ने हमारे पुत्र को सभी युद्ध कलाएं सीखाकर इसे  एक पराक्रमी योद्धा बनाया है. साथ ही साथ तमाम देवताओं ने इसे अनेकों दिव्यास्त्र दिए है. इसे स्वीकार कीजिये और मुझे अपने कर्तव्य के भार से मुक्त कीजिये ताकि मैं स्वतंत्र रूप से इस पूरे ब्रह्मण्ड में बह सकूँ. मैंने अपने इस पुत्र को इच्छा मृत्यु का वरदान देती हूँ, ये अपनी इच्छा से अपने प्राण त्याग सकेगा और इस वरदान की महिमा से ये अमर होगा. 

इसके बाद देवव्रत का महाराज शांतनु ने राजतिलक कर हस्तिनापुर का युवराज घोषित कर दिया. कई दिनों के पश्चात महराज शांतनु को सत्यवती से प्रेम हो जाता है और अपने पिता के दुःख के निवारण के लिए उन्होंने सत्यवती के वचनों को स्वीकार करके आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा इन्होंने ली. जिसके कारण इनके पिता ने इन्हें भीष्म प्रतिज्ञा लेने के लिए भीष्म के नाम से पहचाने जाने का वरदान दिया. 

आर्यवर्त के सारे योद्धा पितामह भीष्म से डरते थे क्योंकि उनके पास ब्रह्मण्ड के सभी दिव्यास्त्र थे जैसे... 

इन्द्रास्त्र, वरुणास्त्र, अग्निअस्त्र, ब्रह्मास्त्र, वायुअस्त्र, सूर्यास्त्र, वज्रास्त्र,मोहिनी अस्त्र, त्वास्त्र, नागास्त्र, नागपाश, रुद्रास्त्र, और पर्वतास्त्र भी था. इन सभी दिव्यास्त्रों के साथ-साथ उनका अद्भुत सामर्थ्य उनके सामने किसी भी योद्धा को उनके सामने टिकने नहीं देता था.