आख़िर कहाँ है कर्ण का कवच और कुण्डल?

महाभारत का युद्ध भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार सबसे महान धर्मयुद्ध माना जाता हैं. जिसमें कई सारे महाबली योद्धों ने भाग लिया था. ये एक ऐसा धर्मयुद्ध था जिसमें, नर, किन्नर, नाग और राक्षस भी शामिल हुए थे. 

वैसे तो इस महायुद्ध में कई सारे महाबली योद्धा शामिल थे लेकिन एक ऐसा योद्धा भी था जिसका जिक्र बहुत अधिक किया जाता है, जिसका नाम था महाबली, महादानी अंग राज कर्ण. 

जिन्होंने इस महान युद्ध सबसे बड़ा दान दिया था. सभी लोग जानत्ते है, कर्ण कुंती और भगवान सूर्य के पुत्र थे, उनके जन्म के समय ही भगवान सूर्य ने उन्हें दिव्य कवच और कुण्डल दिए थे. जो कई सारे अमोघ अस्त्रों को अपने अंदर समा लेता था और ये भी सत्य था कि जब तक कर्ण के पास वो रहता पांडव की जीत नहीं हो सकती थी. ये बात दुर्योधन को भली भांति पता थी. इधर श्री कृष्ण को भी इस बात की जानकारी थी और अंत में देवराज इंद्र की सहायता से कर्ण का कवच और कुण्डल  छल से उनसे दान में इंद्र ने मांग लिया. 

जब वो कवच और कुंडल लेकर देवलोक पहुंचे तब वो कवच और कुण्डल के साथ देवलोक में प्रवेश नहीं कर पाएं क्योंकि उसे उन्होंने छल से लिया था. इस लिए उन्होंने उसे समुद्र देवता के संरक्षण में सुरक्षित रख दिया और खुद स्वर्ग चले गए. कई सालों बाद जब चन्द्र देव को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने उसे चुरा लिया और वहाँ से भागने लगे तब समुद्र और सूर्य देवता दोनों ने मिलकर चंद्र देव से उसे पुनः प्राप्त किया और अंत में उसे कोणार्क में पुरि के निकट सूर्य मंदिर के पास कहीं सुरक्षित रख दिया ताकि कोई भी उसे प्राप्त न कर सके और उसकी शक्तियों का गलत उपयोग न कर सके. कहा जाता है इस कवच और कुण्डल को जिस जगह छुपाया गया है वहाँ पर इसकी रखवाली दिव्य शक्तियां करती है.