कागज की कस्ती बना कर,
बहा देते है, ना जाने कौन सी मंजिल
के लिए, समंदर में छोड़ देते है,
हसरत है सिर्फ तुम्हें पाने की,और कोई ख्वाहिश नहीं इस दीवाने की,शिकवा मुझे तुमसे नहीं खुदा से है,क्या ज़रूरत थी, तुम्हें इतना खूबसूरत बनाने की!
एहसान करो तो दुआओ में मेरी मौत मांगना
अब जी भर गया है जिंदगी से !
एक छोटे से सवाल पर
इतनी ख़ामोशी क्यों ….?
बस इतना ही तो पूछा था-
“कभी वफ़ा की किसी से…
चाहता कौन है बेवफ़ायी करना
उसने परिवार सम्भाला होगा
यही सोच कर समझाता हूँ ख़ुदको
मजबूर होकर मुझे दिल से निकाला होगा
शिकवा भी होगा हमसे शिकायत भी होगी,
पर दोस्त से गिला किया नहीं करते।
हम अच्छे नहीं बुरे ही सही,
तुम्हें वैलेंटाइन मुबारक हो,
लेकिन हम जैसा दोस्त मिला नहीं करते।।