समय रहते तुम होश में कैफ़ियत तलब करते तो अच्छा होताअलविदा कहने से पहले ख़ैरियत सोचते तो अच्छा होता.
समय रहते तुम होश में कैफ़ियत तलब करते तो अच्छा होता
अलविदा कहने से पहले ख़ैरियत सोचते तो अच्छा होता.
हाथो की लकीरों पे मत जा ए ग़ालिब,नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते|
उसने मिलने की अजीब शर्त रखी… गालिब चल के आओ सूखे पत्तों पे लेकिन कोई आहट न हो!
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
न जाने क्या है किसी की उदास आँखों मैंवो मुंह छुपा के भी जाए तो बेवफ़ा न लगे
न जाने क्या है किसी की उदास आँखों मैं
वो मुंह छुपा के भी जाए तो बेवफ़ा न लगे