मुझको मेरी तन्हाई से अब शिकायत नहीं है,
मैं पत्थर हूँ मुझे खुद से भी मोहब्बत नहीं है।
वफ़ा की ज़ंज़ीर से डर लगता है,कुछ अपनी तक़दीर से डर लगता है.जो मुझे तुझसे जुदा करती है,हाथ की उस लकीर से डर लगता है!
Khuda salamat rakhna unko,Jo humse nafrat karte hai,Pyaar na sahi nafrat hi sahi,Kuch to h jo wo sirf hmse krte h...
Jis Jagah Jaakar Koee Vaapas Nahin AataJaane Kyon Aaj Vahaan Jaane Ko Jee Chaahata Hai
वो तो अपना दर्द रो-रो कर सुनाते रहे,हमारी तन्हाइयों से भी आँख चुराते रहे,हमें ही मिल गया खिताब-ए-बेवफा क्योंकि,हम हर दर्द मुस्कुरा कर छुपाते रहे।