तालीम नहीं दी जाती
परिंदो को उड़ानों की……..
वह तो खुद ही समझ
जाते हैं उच्चै आसमानो की…
उठाये जो हाथ उन्हें मांगने के लिए,
किस्मत ने कहा, अपनी औकात में रहो।
लगता है मैं 💁🏻♂️भूल चुका हूँ मुस्कुराने 🤗 का हुनर…
कोशिश जब भी करता हूँ आँसू 😥 निकल आते हैं..!
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती हैरात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहींकांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता हैख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती हैऔर सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है