ये सर्द शामें भी किस कदर ज़ालिम है,बहुत सर्द होती है, मगर इनमें दिल सुलगता है।
न कुर्बतों मेंसुकून हैन फासलों में करार हैना वस्ल में मज़ा हैन हिज़्र मेंवो सज़ा हैमैं कहूँ जान की आफततुम कहते हो कि प्यार है
हमारी तड़प तो कुछ
भी नही है हुजुर
सुना है कि उसके दिदार के
लिए तो आईना भी तरसता है
तेरी मोहब्बत को तो पलकों पर सजायेंगे;
मर कर भी हर रस्म हम निभायेंगे;
देने को तो कुछ भी नहीं है मेरे पास;
मगर तेरी ख़ुशी मांगने हम खुदा तक भी जायेंगे।