सूरज डूबा और आँखों में नमी-सी है,आज फिर एक बार आपकी कमी-सी है.
शाम को सूरज ढल रहा है,बादलों के पीछे कहीं छुप रहा है.
ढलते-ढलते जब सूरज बादलों में छिप जाता है,फिर धीरे-धीरे तेरे यादों का सूरज उग आता है.
सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थी यहीं परछाइयां हमने!
सूरज की फिक्र है कि अंँधेरा कहीं ना हो,
और रात अमावस को लिये घूम रही है!!
चढ़ते सूरज के पुजारी तो लाखों हैं साहब…
डूबते वक़्त हमने सूरज को भी तन्हा देखा है!