कितनी अजीब है इस शहर की तन्हाई भी
हज़ारो लोग है मगर फिर भी कोई उस जैसा नहीं
हर किसी के हाथ में बिक जाने को तैयार नहीं,
यह मेरा दिल है आपके शहर का अखबार नहीं.
शहर में ज़िन्दगी बदल सी गई हैं,
इक कमरें में सिमट सी गई हैं.
यादों का शहर देखो बिल्कुल वीरान हैं,
दूर-दूर तक न जंगल, न कोई मकान हैं.
गाँव में रहने वाले इतराते नहीं हैं,
शहर में जीने वाले हकीकत बताते नहीं हैं.
शहर की यहीं जिन्दगी हैं,
अब तो हवाओं में भी गंदगी हैं.