रहने का मजा तो गाँव में हैं,
शहर कहाँ पेड़ की छाँव में हैं.
शहर की सड़कों पर तो दहशत बसती है,
मेरे गाँव की गलियाँ आज भी नज़ाकत भरी हैं!
ख्वाहिशों के इस शहर में हम बेख्वाहिश से हो चले,
टूटे हम इस कदर इश्क में,
ना फिर दिल जुड़े ना फिर कभी हम मिले!!
गैरों के शहर से गुजरा था
पर कुछ लोग इस तरह मिले कि
लगा ये शहर अपना था
कितनी अजीब है इस शहर की तन्हाई भी
हज़ारो लोग है मगर फिर भी कोई उस जैसा नहीं
शहर में ज़िन्दगी बदल सी गई हैं,
इक कमरें में सिमट सी गई हैं.