पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी,साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी हो शराब में।
सिखा न सकी जो उम्र भर तमाम किताबे मुझे..
करीब से कुछ चेहरे पढे और न जाने कितने..
सबक सीख लिए।
दिखा के मदभरी आंखें कहा ये साकी ने,
हराम कहते हैं जिसको यह वो शराब नहीं।
साक़ी नज़र न आये तो गर्दन झुका के देख,शीशे में माहताब है सच बोलता हूँ मैं।
सबकी नज़रों में हो साकी ये ज़रूरी है मगरसबपे साकी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं।
तुम आज साकी बने हो तो शहर प्यासा है,
हमारे दौर में खाली कोई गिलास न था।