ग़ुरबत न दे सकी मेरे ज़मीर को शिकस्त,
झुक कर किसी अमीर से मिलते नहीं हैं हम!
पीने वालों को भी नहीं मालूम
मय-कदा कितनी दूर है साक़ी
❤️
उम्र जलवों में हो बसर ये ज़रूरी तो नहीं
हर शबे ग़म की हो सहर ये ज़रूरी तो नहीं,
सब की साकी पे नज़र हो ये ज़रूरी है मगर
सब पे साकी की हो नज़र ये ज़रूरी तो नहीं!
सिखा न सकी जो उम्र भर तमाम किताबे मुझे..
करीब से कुछ चेहरे पढे और न जाने कितने..
सबक सीख लिए।
बैठा हूँ मयखाने में
गम मिटा रहा हूँ
मैं भी क्या अजीब हूँ
शिकायत ख़ुदा से है
मैं साकी को बता रहा हूँ
बात साक़ी की न टाली जाएगी
कर के तौबा तोड़ डाली जाएगी