मुझे, बारिश की बूंदों में झलकती है उसकी तस्वीर,
आज फिर भीग बैठे है उसे पाने की चाहत में।
मुझे बारिश से ज़्यादा तासीर है तेरी यादों मे
हम अक्सर बंद कमरे मे भी भीग जाते हैं
मजबूरियाँ ओढ़ के निकलता हूँ मैं घर से आजकल
वरना शौक तो आज भी है बारिश में भीगने का
ज़रा ठहरो , बारिश थम जाए तो फिर चले जाना,
किसी का तुझ को छू लेना मुझे अच्छा नहीं लगता..
अब कौन घटाओं को, घुमड़ने से रोक पायेगा,
ज़ुल्फ़ जो खुल गयी तेरी, लगता है सावन आयेगा..
उस को भला कोई कैसे गुलाब दे,
आने से जिसके खुद मौसम ही गुलाबी हो जाये.