जब भी देखता हूँ किसी गरीब को हँसते हुए,
यकीनन खुशिओं का ताल्लुक दौलत से नहीं होता।
घर में चूल्हा जल सके इसलिए कड़ी धूप में जलते देखा है ,
हाँ मैंने गरीब की सांस को गुब्बारों में बिकते देखा है।
गरीब नहीं जानता क्या है मज़हब उसका ,
जो बुझाए पेट की आग वही है रब उसका।
शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता हैवो मजदूर, जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है
गरीबों के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों मेंतभी तो भगवान खुद बिक जाते हैं बाजारों में
जो गरीबी में एक दिया भी न जला सकाएक अमीर का पटाखा उसका घर जला गया