गरीब नहीं जानता क्या है मज़हब उसका
जो बुझाए पेट की आग वही है रब उसका
मोहब्बत भी सरकारी नौकरी लगती हैं साहबकिसी गरीब को मिलती ही नहीं
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भीजिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है
शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता हैवो मजदूर, जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है
गरीबों के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों मेंतभी तो भगवान खुद बिक जाते हैं बाजारों में
जो गरीबी में एक दिया भी न जला सकाएक अमीर का पटाखा उसका घर जला गया