खौफ नहीं था , अजनबी से मुलाकात का…
फिक्र थी कि कोई रिश्ता ना बन जाए
उसने मिलने की अजीब शर्त रखी… गालिब चल के आओ सूखे पत्तों पे लेकिन कोई आहट न हो!
मंजिल का नाराज होना भी जायज था… हम भी तो अजनबी राहों से दिल लगा बैठे थे…!
हमे बेवफा बोलने वाले
आज तू भी सुनले,
जिनकी फितरत ‘बेवफा’
होती है,
उनके साथ कब ‘वफा’ होती है!!
ये किस तरह की ज़िद दिल मुझ से करने लगा, जिसे मैंने भूलना चाहा उसे वो याद करने लगा .