“तेरे बाद
हमने दिल का दरवाजा खोला ही नहीं
वरना बहुत से चाँद आये
इस घर को सजाने के लिए”
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
वो तो अपना दर्द रो-रो कर सुनाते रहे,हमारी तन्हाइयों से भी आँख चुराते रहे,हमें ही मिल गया खिताब-ए-बेवफा क्योंकि,हम हर दर्द मुस्कुरा कर छुपाते रहे।
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा
फेर लेते हैं नज़र, दिल से भुला देते हैं,
क्या यूँ ही लोग वाफ़ाओं का सिला देते हैं,
वादा किया था फिर भी ना आए मज़ार पर,
हमने तो जान दी थी इसी ऐतबार पर!!