जन्नत कैसी होती हैं यह तो पता नहीं, पर इश्क़ मुकम्मल हो जाए तो जिंदगी भी उससे कम नहीं.
पर इश्क़ मुकम्मल हो जाए तो जिंदगी भी उससे कम नहीं.
तू वाकिफ़ नहीं मेरी दीवानगी से…
जिद्द पर आऊँ तो..ख़ुदा भी ढूंढ लूँ …
कितनी जल्दी ये शाम आ गई;
गुड नाईट कहने की बात याद आ गई;
हम तो बैठे थे सितारों की महफ़िल में;
चाँद को देखा तो आपकी याद आ गई.
सूरज नहीं डूबा ज़रा सी शाम होने दो”
मैं खुद लौट जाउंगा मुझे नाकाम होने दो”
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने
दो..
बडी लम्बी खामोशी से गुजरा हूँ मै,किसी से कुछ कहने की कोशिश मे।