जाने अब कौन आँखों से निकल,कागज़ पे आने वाला है,सुना हैं मेरा मेहबूब फिर,कोई तस्वीर बनाने वाला है l
इश्क की शुरुआत निगाहों से होती है
सजा की शुरुआत गुनाहों से होती है
कहते हैं इश्क भी एक गुनाह है
जिसकी शुरुआत दो बेगुनाहों से होती है
कुछ इस तरह से वफ़ा की मिसाल देता हूँ
सवाल करता है कोई तो टाल देता हूँ
उसी से खाता हूँ अक्सर फरेब मंजिल का
मैं जिसके पाँव से काँटा निकाल देता हु …
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू सुना है आबशारों को बड़ी तकलीफ़ होती है
खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को चरागों से मज़ारों को बड़ी तकलीफ़ होती है कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे है क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होती है
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी मगर हम खांकसारों को बड़ी तकलीफ़ होती है
जब भी करीब आता हूँ बताने के लिये,जिंदगी दूर रखती हैं सताने के लिये,महफ़िलों की शान न समझना मुझे,मैं तो अक्सर हँसता हूँ गम छुपाने के लिये।