"जैसे बहती नदी, किनारों पे निशान छोड़ जाती है,जुगनू अँधेरे में अपनी, अलग पहचान छोड़ जाती है,कभी गुजरती है रेल पुल पे, मुझे सुनाई नहीं देता,तुम्हारे साथ होकर, ज़िंदगी पहचान छोड़ जाती है l"
न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।।
मिलने का वादा कर गयी थी,
वापस लौट आउंगी ये कहकर गयी थी,
आई है अब वो जनाज़े पे मेरे,
वादा वो अपना निभाने चली थी!!
सदा दूर रहो ग़म की परछाइयों से,
सामना ना हो कभी तन्हाइयों से,
हर अरमान हर ख़्वाब पूरा हो आपका,
यही दुआ है दिल की गहराइयों से।
उठाये जो हाथ उन्हें मांगने के लिए,
किस्मत ने कहा, अपनी औकात में रहो।