सुना था बदल जाती है आदतें भी वक़्त के साथ,पर रूह तो जिस्म छोड़ती है बस मौत आने के बाद,
उनका भी कभी हम दीदार करते है,उनसे भी कभी हम प्यार करते है,क्या करे जो उनको हमारी जरुरत न थी,पर फिर भी हम उनका इंतज़ार करते है..!!
सुनी थी सिर्फ हमने ग़ज़लों में जुदाई की बातें ;
अब खुद पे बीती तो हक़ीक़त का अंदाज़ा हुआ !!
खुदा मुझ पर एक नजर कर दे
उस अजनबी को मेरा हमसफर कर दे
जब भी वो सांस ले उसे मेरा नाम सुनाई दे
मेरी चाहत का उस पर इस कदर असर कर दे
गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के