लिया हो जो न आपने ऐसा कोई इम्तिहान न रहा,
इंसान आखिर मोहब्बत में इंसान न रहा,
है कोई बस्ती जहाँ से न उठा हो जनाज़ा दीवाने का,
आशिक की कुर्बत से महरूम कोई कब्रिस्तान न रहा।
तारे और इंसान में कोई फर्क नहीं होता,दोनो ही किसी की ख़ुशी के लिऐ खुद को तोड़ लेते हैं।
खन खना खन है ख्यालों मेंजरुर आज उसने कंगन पहने होंगे
ये कैसा सरूर है तेरे इश्क का मेरे मेहरबाँ,
सँवर कर भी रहते हैं बिखरे बिखरे से हम!
कुछ अजीब सा रिश्ता है
उसके और मेरे दरमियां
ना नफरत की वजह मिल रही है
ना मोहब्बत का सिला