हाथ पर घड़ी कोईभी बँधी हो,
लेकिन वक़्त अपनाहोना चाहिए!!
तेरे सिवा कौन समा सकता है मेरे दिल में……रूह भी गिरवी रख दी है मैंने तेरी चाहत में !!
चलती हुई “कहानियों” के जवाब तो बहुत है मेरे पास ….लेकिन खत्म हुए “किस्सों” की खामोशी ही बेहतर है.
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह...
Yeh Mat Samajh Tere Kabil Nahi Hain Hum,Tadap Rahe Hain Woh Jinhein Haasil Nahi Hain Hum.