हम सिमटते गए उनमें और वो हमें भुलाते गए,
हम मरते गए उनकी बेरुखी से, और वो हमें आजमाते गए,
सोचा की मेरी बेपनाह मोहब्बत देखकर सीख लेंगी वफाएँ करना,
पर हम रोते गए और वो हमें खुशी खुशी रुलाते गए..
ये बेवफा, वफा की कीमत क्या जाने !
ये बेवफा गम-ए-मोहब्बत क्या जाने !
जिन्हे मिलता है हर मोड पर नया हमसफर !
वो भला प्यार की कीमत क्या जाने !!
वो तो अपना दर्द रो-रो कर सुनाते रहे,हमारी तन्हाइयों से भी आँख चुराते रहे,हमें ही मिल गया खिताब-ए-बेवफा क्योंकि,हम हर दर्द मुस्कुरा कर छुपाते रहे।
तो क्या हुआ जो आप नहीं मिलते हमसे.,मिला तो रब भी नहीं हमसे,पर इबादत कहां रुकी हमसे..
आपकी यादें भी हैं, मेरे बचपन के खिलौनो जैसी ..
तन्हा होते हैं तो इन्हें ले कर बैठ जाते हैं…!