दोस्त बनकर भी वो नहीं साथ निभानेवाला,
वही अंदाज़ है उस ज़ालिम का ज़माने वाला।
उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ
हमीं यकीन था, हमारा कुसूर निकलेगा
यकीन न आये तो एक बार पूछ कर देखो
जो हंस रहा है वोह ज़ख्मों से चूर निकलेगा
एहसान करो तो दुआओ में मेरी मौत मांगना
अब जी भर गया है जिंदगी से !
एक छोटे से सवाल पर
इतनी ख़ामोशी क्यों ….?
बस इतना ही तो पूछा था-
“कभी वफ़ा की किसी से…
ना गिला है कोई हालात से,ना शिकायते है किसी की बात से,खुद ही सारे जुदा हुए,मेरी जिंदगी की किताब से..
GST के विरोध मे हड़ताल कर रहे व्यापारियो को पता होना चाहिए की ,फूफा के रूठने से ब्याह नही रूका करते..