रोज़ ये दिल बेकरार होता है,काश के तुम समझ सकते कीचुप रहने वालो को भी किसी से प्यार होता है...
शायर तो हम
“दिल” से है….
कमबख्त “दिमाग” ने
व्यापारी बना दिया.
चुनाव को लेकर चार लाइन लिखी, जो बहुत जरूरी भी है..तुम मेरी बात पे चेहरा उदास मत करना,इधर की सुनके, उधर जाके बात मत करना,चुनाव चार दिन के है, ताल्लुक़ जिन्दगी भर के..किसी भी दोस्त से रिश्ता खराब मत करना।
चुनाव को लेकर चार लाइन लिखी, जो बहुत जरूरी भी है..
तुम मेरी बात पे चेहरा उदास मत करना,
इधर की सुनके, उधर जाके बात मत करना,
चुनाव चार दिन के है, ताल्लुक़ जिन्दगी भर के..
किसी भी दोस्त से रिश्ता खराब मत करना।
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती हैरात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहींकांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता हैख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती हैऔर सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है