हम तो अकेले ही चले थे मंजिले सफर
लड़कियां मिलती रही शादियां होती गई।
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कबीर बेदी
जिदंगी typing... और emoji के बीच ही उलझ कर रह गयी यार..
ना मुस्कुराने को जी चाहता हैं,
ना कुछ खाने-पीने को जी चाहता हैं,
अब ठंड बर्दास्त नही होती,
सब कुछ छोडकर रजाई में घुस जाने को जी चाहता हैं
लोगों को पता नहीं कैसे सच्चा
प्यार मिल जाता है...
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हमें तो सुबह पलंग के नीचे
उतारी चप्पल नहीं मिलती।
😝😝