हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँशीशे के महल बना रहा हूँ
हाथ पर घड़ी कोईभी बँधी हो,
लेकिन वक़्त अपनाहोना चाहिए!!
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
चुपके से आकर इस दिल में उतर जाते हो,सांसों में मेरी खुशबु बन के बिखर जाते हो,कुछ यूँ चला है तेरे ‘इश्क’ का जादू,सोते-जागते तुम ही तुम नज़र आते हो।