मौसम था बेकरार तुम्हें सोचते रहे,कल रात बार बार तुम्हें सोचते रहेबारिश हुई तो लग कर घर के दरवाजे से हमचुप चाप बेकरार तुम्हें सोचते रहे...
वो बेवफा हर बात पे देता है परिंदों की मिसाल,
साफ साफ नहीं कहता मेरा शहर छोड़ दो।
“तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे...ख़त लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,उसको पढते रहे और जलाते रहे....”
प्यार में बेवफाई मिले तो गम न करना;
अपनी आँखे किसी के लिए नम न करना;
वो चाहे लाख नफरते करें तुमसे;
पर तुम अपना प्यार कभी उसके लिए कम न करना।
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैंज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं
मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर मेंमगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं