नहीं ‘मालूम ‘हसरत है या तू मेरी मोहब्बत है,बस इतना जानता हूं कि मुझको तेरी जरूरत है।
अपने दिल की जमाने को बता देते हैं, हर एक राज से परदे को उठा देते हैं, आप हमें चाहें न चाहें गिला नहीं इसका, जिसे चाह लें हम उसपे जान लुटा देते हैं।
फिर से मिले वो आज अजनबी से बनकर,और हमें आज फिर से मोहब्बत हो गई।
बड़ी ख़ामोशी से गुज़र जाते हैं हम एक दूसरे के करीब से..फिर भी दिलों का शोर सुनाई दे ही जाता है…!!