हर बार कोई आ के तेरा ज़िक्र छेड़ कर,
इक आग फेंक जाता है सूखी कपास पर!
ज़िक्र और
फ़िक्र करना छोड़ दो,
समझदार होगा तो आएगा
वरना भाड़ में जाएगा !!
महोब्बत की महफ़िल में आज मेरा
ज़िक्र है, अभी तक हूं याद में उसको
खुदा का शुक्र है।
कहीं अब मुलाक़ात हो जाए हमसे,बचा कर के नज़र गुज़र जाइएगा...जो कोई कर जाए कभी ज़िक्र मेरा,हंसकर फिर सारे इल्ज़ाम मुझे दे जाइएगा🤐...।।।
जो सामने जिक्र नही करते,वो दिल ही दिल मे बहुत फिक्र करते हैं.
फ़िक्र तो तेरी आज भी है,बस जिक्र का हक नही रहा