दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
उलझे दामन को छुड़ाते नहीं झटका दे कर
कितने तोहफे देती है ये मोहब्बत भी,रुसवाई अलग, जुदाई अलग, तन्हाई अलग।
हर ख्वाहिश को इस कदर मत तोड़ो,भले रुसवा रहो मुझसे पर साथ न छोड़ो.