कुछ तुम रूठे, कुछ मैं रूठी,
बात हो गई रुसवाई की!
ना तुम समझे, न मैं मानी,
वजह बन गई तन्हाई की!!
दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
उलझे दामन को छुड़ाते नहीं झटका दे कर
कितने तोहफे देती है ये मोहब्बत भी,रुसवाई अलग, जुदाई अलग, तन्हाई अलग।