अब क्या लिखूं तेरी तारीफ में मेरे हमदम,अलफ़ाज़ कम पड़ जाते है तेरी मासूमियत देखकर।
मासूमियत तो रग रग में है मेरे,
बस ज़ुबान की ही बद्तमीज़ हूँ…!
उसने बड़ी मासूमियत से पूछा।
शायरी लिखते हो तो.. मोहब्बत तो जरूर की होगी
मासूम मासूमियत का जबाब नहीं
तेरी ज़ब भी मुस्कुराते है दिल चुरा लेते हो
तेरे चेहरे पे, ये मासूमियत भी खूब जमती है..
क़यामत आ ही जाएगी ज़रा-सा मुस्कुराने से..