तुम क्या जानो हाल हमारा,
एक तो शहर बंद ऊपर से ख़्याल तुम्हारा!
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुजरी,
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया!
मेरे बस में नहीं अब हाल-ए-दिल बयां करना,
बस ये समझ लो, लफ्ज कम मोहब्बत ज्यादा है।
तन्हाई से लढ रहा हूँया उसकी आदत हो चुकी हैकुछ पता नही, मगर हाँहाल-ए-दिल ये है कीहम मोहब्बत के नाम सेआज भी टूट जाते है
जब हाल-इ-दिल तुमसे कहने कोमैं मिलने आती हूँपर देख तेरा दीवानापनमैं सोच में पड़ जाती हूँजब हाल-इ-दिल..