खुली किताब थे हम
अफ़सोस अनपढ़ के हाथों थे हम।
जिसे डर ही नही था मुझे खोने का
वो क्या अफ़सोस करेगा मेरे ना होने का।
हमसे बिछड़कर अब वो खुश रहने लगे है,
अफ़सोस की हमने उनकी ये ख़ुशी छीन रखी थी।
उसकी आँखों में नजर आता है सारा जहाँ मुझको ,अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा।
उसकी आँखों में नजर आता है सारा जहाँ मुझको ,
अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा।
Afsos To Hai Tumhare Badal Jane Ka Magar,
Tumhari Kuchh Baton Ne Mujhe Jeena Sikha Diya!
Kuch baton ne jina sikha diya
ना अफसोस है, ना कोई शर्मिंदगी है,गुज़र रही है जो गुनाहो में…ये कैसी ज़िन्दगी है !!!