जिस्म को
तो छू लिया तुमने,
मगर रूह को छूने की
औकात नहीं तुम्हारी !!
वो तो अपना दर्द रो-रो कर सुनाते रहे,हमारी तन्हाइयों से भी आँख चुराते रहे,हमें ही मिल गया खिताब-ए-बेवफा क्योंकि,हम हर दर्द मुस्कुरा कर छुपाते रहे।
आज हम उनको बेवफा बताकर आए है,उनके खतो को पानी में बहाकर आए है,कोई निकाल न ले उन्हें पानी से..इस लिए पानी में भी आग लगा कर आए है।
काश उन्हें चाहने का अरमान नही होता,में होश में होकर भी अंजान नही होता,ये प्यार ना होता, किसी पत्थर दिल से,या फिर कोई पत्थर दिल इंसान ना होता!
हँसते हुए ज़ख्मों को भुलाने लगे हैं हम,हर दर्द के निशान मिटाने लगे हैं हम,अब और कोई ज़ुल्म सताएगा क्या भला,ज़ुल्मों सितम को अब तो सताने लगे हैं हम।