इश्क की गहराईयों में खूबसूरत क्या है
मैं हूँ, तुम हो और कुछ की ज़रुरत क्या है
दर्द दे कर इश्क़ ने हमे रुला दिया,
जिस पर मरते थे उसने ही हमे भुला दिया,
हम तो उनकी यादों में ही जी लेते थे,
मगर उन्होने तो यादों में ही ज़हेर मिला दिया.
ऐसा नहीं था कि इस दिल में तेरी तस्वीर नहीं थी
लेकिन इन हाथों में तेरे नाम की लकीर ही नहीं थी
तुझको खुदा ने रुक-रुक बनाया,
पूरी ज़माने की खुदाई तुझ में ही भर दी,
हर अंग तेरा जैसे ,
रह-रह तू बरसे सावन महीना…
हर रिश्ते में विश्वास रहने दो;
जुबान पर हर वक़्त मिठास रहने दो;
यही तो अंदाज़ है जिंदगी जीने का;
न खुद रहो उदास, न दूसरों को रहने दो।