जागना और जगा के सो जाना
रात को दिन बना के सो जाना
Text करना तमाम रात उसको,
उंगलियों को दबा के सो जाना
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती हैरात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहींकांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता हैख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती हैऔर सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है
मोहब्बत का नतीजा दुनिया में हमने बुरा देखा
जिन्हे दावा था वफा का उन्हें भी हमने बेवफा देखा
मैं आप के बारे में सोच रहा था,
और मुझे आश्चर्य हुआ कि आप
कितनी देर तक मेरे ज़हन में थे
तब मुझे एहसास हुआ: जबसे आप
मुझे मिले, आपने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा!!
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।