तब बहुत देर हो
चुकी होगी,
जब तुझे
हम समझ आएंगे..
तकदीर के हाथों खुद को में जोड़ना नहीं चाहता,
मेरे दो हाथो का होसला में तोडना नहीं चाहता,
मौसम की तरह बदल जाती ये हाथो की लकीरें,
बंद मुट्ठी मेरी हरगिज़ मैं खोलना नहीं चाहता।
कभी ग़म तो कभी तन्हाई मार गयी,
कभी याद आ कर उनकी जुदाई मार गयी,
बहुत टूट कर चाहा जिसको हमने,
आखिर में उनकी ही बेवफाई मार गयी
Dekhi hotho ki hasi zakham na dekhe dil ka,
aap bhi oron ki tarha kha gae dhokha keishe!
Jis Jagah Jaakar Koee Vaapas Nahin AataJaane Kyon Aaj Vahaan Jaane Ko Jee Chaahata Hai