उलझा रही है मुझको,यही कश्मकश आजकल..!!तू आ बसी है मुझमें,या मैं तुझमें कहीं खो गया हूँ??
उलझा रही है मुझको,
यही कश्मकश आजकल..!!
तू आ बसी है मुझमें,
या मैं तुझमें कहीं खो गया हूँ??
जो “प्राप्त” है वो ही “पर्याप्त” है ।
इन दो शब्दों में सुख बे हिसाब हैं।।
हथेली पर रखकर नसीबहर शख्स मुकद्दर ढूंढता हैसीखो उस समंदर सेजो टकराने के लिएपत्थर ढूंढता है.
लगता है जैसे कोई खूबसूरत शाम है…देखा तो पाया आपकी हंसी का खुमार है…जो आज के दिन चॉकलेट की तरह…हवाओ में भी घुला प्यार की मिठास है…!