शर्मा जी की छत टपक रखी थी ठीक डाइनिंग टेबल के ऊपर…
पलंबर ने पूछा – आपको कब पता चला ?
शर्मा जी – कल रात को जब मेरा पैग तीन घंटे तक ख़त्म नहीं हुआ..
मुस्कुराता रहु मैं तेरी नज़रो से नज़रे मिलाकरकभी सीने से, तो कभी अपने होंठो से लगाकरनादान दिल की बेकरारी में बस तेरा हो जाउऔर ज़िन्दगी का हर पल मैं गुजारूं तेरे करीब आकर.!
तेरे सिवा कौन समा सकता है मेरे दिल में……रूह भी गिरवी रख दी है मैंने तेरी चाहत में !!
आई बसंत और खुशियाँ लायी
कोयल गाती मधुर गीत प्यार के
चारों और जैसे सुगंध छाई
फूल अनेकों महके बसंत के
रात का चाँद आसमान में निकल आया है.साथ में तारों की बारात लय है.ज़रा आसमान की ओर देखो वो आपको..मेरी और से गुड नाईट कहने आया है.