अगर मोहब्बत नही थी तो बता दिया होता,
इस दिल को टूटने से बचा लिया होता !
“जिसे पूजा था हमने वो खुदा तो न बन सका,
हम ईबादत करते करते फकीर हो गए…!!!
लिपट जाओ एक बार फिर गले हमारे,
कोई दीवार न रहे बीच हमारे तुम्हारे,
लिपट जाती जरूर अगर ज़माने का दर न होता,
बसा लेती मैं तुमको अगर सीने में कोई घर होता..
वो चैन से बैठे हैं मेरे दिल को मिटा कर
ये भी नहीं अहसास के क्या चीज़ मिटा दी
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैंज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं
मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर मेंमगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं