अकेले ही लड़नी होती है जिन्दगी की लड़ाई
क्योकि लोग सिर्फ तसल्ली देते हैं साथ नही !
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए,
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए|
“लोग क्या कहेंगे”- ये बात इंसान को आगे नहीं बढ़ने देती
पैसे से बिस्तर खरीदा जा सकता है, नींद नहीं
पैसे से महल खरीदा जा सकता है लेकिन खुशियाँ नहीं
अच्छाई और बुराई दोनों हमारे अंदर हैं
जिसका अधिक प्रयोग करोगे वो उभरती व निखरती जायगी