“कभी मिले फुर्सत तो इतना जरूर बताना
वो कौन सी मोहब्बत थी जो हम तुम्हे न दे सके।”
शायर तो हम
“दिल” से है….
कमबख्त “दिमाग” ने
व्यापारी बना दिया.
मैं कुछ लम्हा और तेरे साथ चाहता था;
आँखों में जो जम गयी वो बरसात चाहता था;
सुना हैं मुझे बहुत चाहती है वो मगर;
मैं उसकी जुबां से एक बार इज़हार चाहता था।
गुज़रते लम्हों में सदिया तलाश करता हूँ,
ये मेरी प्यास है नदिया तलाश करता हूँ.
यहाँ तो लोग गिनाते है खुबिया अपनी,
में अपने आप में खामिया तलाश करता हूँ….!!
कई बार ली है तुमने तलाशियाँ मेरे दिल की
बताओ कभी कुछ और मिला है तुम्हारे सिवा!!