कोन जाने इश्क में क्यों एक नजर ही कायनात होती है
अरे इश्क के शहर में तो ये साज़िश भी बड़े शान से होती है
Diye Hain Zindagi Ne Zaḳhm Aise;Ki Jin Ka Waqt Bhi Marham Nahin Hai!
साथ रोती थी हँसा करती थी
एक परी मेरे दिल में बसा करती थी
किस्मत थी हम जुदा हो गए वरना वो
मुझे अपनी तकदीर कहा करती थी
वो मुस्कुरा के मुकरने
की अदा जानता है
मैं भी आदत बदल
लेता तो सुकून में होता
दिल से रोये मगर होंठो से मुस्कुरा बेठे,यूँ ही हम किसी से वफ़ा निभा बेठे,वो हमे एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का,और हम उनके लिये जिंदगी लुटा बेठे..