सूखे पत्ते की तरह थे हम किसी ने समेटा भी तो
किसी भी मुशकिल का अब किसी को हल नही मिलता ,
शायद अब घर से कोई माँ के पैर छूकर नही निकलता
अब तुझे न सोचू तो, जिस्म टूटने-सा लगता है..
एक वक़्त गुजरा है तेरे नाम का नशा करते~करते !
जो भी आता है एक नयी चोट दे के चला जाता है ए दोस्त,….
मै मज़बूत बहोत हु लेकिन कोई पत्थर तो नहीं,….
हर किसी के नसीब मेँ कहाँ लिखी है चाहतेँ,
कुछ लोग दुनिया मेँ आते है फ़कत तन्हाइयों के लिये॥