बहुत सुन्दर शब्द सेवा करनी है तो, घड़ी मत देखो |प्रसाद लेना है तो, स्वाद मत देखो |सत्संग सुनाना है तो, जगह मत देखो |बिनती करनी है तो, स्वार्थ मत देखो |समर्पण करना है तो, खर्चा मत देखो |रहमत देखनी है तो, जरूरत मत देखो !!
ये मुहब्बत कब, किससे हो जाये इसका अंदाजा नहीं होता
ये वो घर है जिसका कोई दरवाजा नहीं होता
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
दूर हो जाने की तलब है तो शौक से जा…
बस याद रहे की मुड़ कर देखने की आदत इधर भी नही…
नहीं ‘मालूम ‘हसरत है या तू मेरी मोहब्बत है,बस इतना जानता हूं कि मुझको तेरी जरूरत है।