इशरत ऐ क़तरा है दरिया मैं फ़ना हो जाना…
दर्द का हद् से गुज़ारना हैं दवा हो जाना ॥
उड़ने दे इन परिंदों को आज़ाद फिजां में ‘गालिब’जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएँगे
Dard ho Dil Men To Dawa KijiyeDil hi Jab Dard Ho To Kya Kijiye.
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह...
उसने मिलने की अजीब शर्त रखी… गालिब चल के आओ सूखे पत्तों पे लेकिन कोई आहट न हो!