एक जमाना था जब प्यार में लोग अंधे होते थे!
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आजकल तोतले हो रहे हैं! अले मेला बाबू... गुच्छा हो गया!
बहोत अंदर तक जला देती है,वो शिकायतें जो बयाँ नही होती..
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए,
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए|
जाने क्यूँ आजकल, तुम्हारी कमी अखरती है बहुतयादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत
Diye Hain Zindagi Ne Zaḳhm Aise;Ki Jin Ka Waqt Bhi Marham Nahin Hai!